Vishwakarma is the deity of architecture, construction and design. In India, he is worshiped once in a year — it is said he built beautiful Dwarika, in which lord Krishna once lived. Below is his Chalisa and Aarti.
Shri Vishwakarma Chalisa
॥ दोहा ॥
विनय करौं कर जोड़कर मन वचन कर्म संभारि, मोर मनोरथ पूर्ण कर विश्वकर्मा दुष्टारि ॥
॥ चोपाई ॥
१) विश्वकर्मा तव नाम अनूपा, पावन सुखद मनन अनरूपा ॥
२) सुन्दर सुयश भुवन दशचारी, नित प्रति गावत गुण नरनारी ॥
३) शारद शेष महेश भवानी, कवि कोविद गुण ग्राहक ज्ञानी ॥
४) आगम निगम पुराण महाना, गुणातीत गुणवंत सयाना ॥
५) जग महं जे परमारथ वादी, धर्म धुरन्धर शुभ सनकादि ॥
६) नित नित गुण यश गावत तेरे, धन्य धन्य विश्वकर्मा मेरे ॥
७) आदि सृष्टि महं तू अविनाशी, मोक्ष धाम तजि आयो सुपासी ॥
८) जग मह प्रथम लीक शुभ जाकी, भुवन चारि दश कीर्ति कला की ॥
९) ब्रह्मचारी आदित्य भयो जब, वेद पारंगत ऋषि भयो तब ॥
१०) दर्शन शास्त्र अरु विज्ञ पुराना, कीर्ति कला इतिहास सुजाना ॥
११) तुम आदि विश्वकर्मा कहलायो, चौदह विद्या भू पर फैलायो ॥
१२) लोह काष्ठ तरु ताम्र सुवर्णा, शिला शिल्प जो पंचक वर्णा ॥
१३) दे शिक्षा दुःख दारिद्र नाश्यो, सुख सम्रद्धि जग मह परकाश्यो ॥
१४) सनकादिक ऋषि शिष्य तुम्हारे, ब्रह्मादिक जै मुनीश पुकारे ॥
१५) जगत गुरु एस हेतु भये तुम, तम-अज्ञान-समूह हने तुम ॥
१६) दिव्य अलौकिक गुण जाके वर, विघ्न विनाशक भय टारन कर ॥
१७) सृष्टि करत हित नाम तुम्हारा, ब्रह्मा विश्वकर्मा भय हारा ॥
१८) विष्णु अलोकिक जग रक्षक सम, शिवकल्याणदायक अति अनुपम ॥
१९) नमो नमो विश्वकर्मा देवा, सेवत सुलभ मनोरथ देवा ॥
२०) देव दनुज किन्नर गन्धर्वा, प्रणवत युगल चरण पर सर्वा ॥
२१) अविचल भक्ति ह्रदय बस जाके, चार पदारथ करतल जाके ॥
२२) सेवत तोहि भुवन दश चारि, पावन चरण भवोभव कारी ॥
२३) विश्वकर्मा देवन कर देवा, सेवत सुलभ अलोकिक मेवा ॥
२४) लौकिक कीर्ति कला भंडारा, दाता त्रिभुवन यश विस्तारा ॥
२५) भुवन पुत्र विश्वकर्मा तनुधारी, वेद अथर्वण तत्व मनन करि ॥
२६) अथर्ववेद अरु शिल्प शास्त्र का, धनुर्वेद सब क्रत्य आपका ॥
२७) जब जब विपति पड़ी देवन पर, कस्ट हन्यो प्रभु कला सेवन कर ॥
२८) विष्णु चक्र अरु ब्रह्म कमण्डल, रूद्र शूल सब रच्यो भूमण्डल ॥
२९) इन्द्र धनुष अरु धनुष पिनाका, पुष्पक यान अलोकिक चाका ॥
३०) वायुयान मय उड़न खटोले, विधुत कला तंत्र सब खोले ॥
३१) सूर्य चन्द्र नवग्रह दिग्पाला, लोक लोकांतर व्योम पताला ॥
३२) अग्नि वायुक्षिति जल अकाशा, आविष्कार सकल परकाशा ॥
३३) मनु मय त्वसटा शिल्पी महाना, देवागम मुनि पंथ सुजाना ॥
३४) लोक काष्ठ, शिल ताम्र सुकर्मा, स्वर्णकार मय पंचक धर्मा ॥
३५) शिव दधिची हरिश्चंद्र भुआरा, कृत युग शिक्षा पालेऊ सारा ॥
३६) परशुराम, नल, नील, सुचेता, रावण, राम शिष्य सब त्रेता ॥
३७) द्वापर द्रोणाचार्य हुलासा, विश्वकर्मा कुल कीन्ह प्रकाशा ॥
३८) मयकृत शिल्प युधिष्ठर पायेऊ, विश्वकर्मा चरणन चित ध्ययेउ ॥
३९) नाना विधि तिलस्मी करि लेखा, विक्रम पुतली द्रस्य अलेखा ॥
४०) वर्णनातीत अकथ गुण सारा, नमो नमो भय टारन हारा ॥
॥ दोहा ॥
दिव्य ज्योति दिव्यांश प्रभु, दिव्य ज्ञान प्रकाश, दिव्य द्रस्टी तिहुँ कालमह विश्वकर्मा प्रभास ॥
विनय करो करी जोरि, युग पावन सुयश तुम्हार, धारि हिय भावत रहे होय कृपा उदगार ॥
॥ छंद ॥
जो नर सप्रेम विराग श्रद्धा सहित पढ़ीहहि सुनि हैं, विश्वास करि चालीसा चौपाई मनन करि गुनि हैं ॥
भव फंद विघ्नों से उसे प्रभु विश्वकर्मा दूर कर, मोक्ष सुख देंगे अवश्य ही कस्ट विपदा चूर कर ॥
Shri Vishwakarma Ji Ki Aarti
१) प्रभु श्री विश्वकर्मा घर आवो प्रभु विश्वकर्मा ॥
२) सुदामा की विनय सुनी, और कंचन महल बनाये ॥
३) सकल पदारथ देकर प्रभु जी दुखियों के दुःख टारे ॥
४) विनय करी भगवन श्री कृष्ण ने द्वारिकापुरी बनाओ ॥
५) ग्वाल बालों की रक्षा की प्रभु की लाज बचायो ॥
६) रामचन्द्र ने पूजन की तब सेतु बांध रचि डारो
७) सब सेना को पार कियाप्रभु लंका विजय करावो ॥
८) श्री कृष्ण के विजय सुनो प्रभु आके दर्शन दिखावो ॥
९) शिल्प विद्या का दो प्रकाश मेरा जीवन सफल बनावो ॥
१०) प्रभु श्री विश्वकर्मा घर आवो प्रभु विश्वकर्मा ॥
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