Vishnu is a Sattvik God, hated by every demon — he killed lots of demons in the avatar of Rama, Krishna, Narasimha and Hayagreeva; his avatara is just for killing the demons. Once, when world was in imbalance he called for a Stambhan Shakti and that appeared in the form of Ma Baglamukhi (one of ten Mahavidyas), that’s why Baglamukhi is called Vaishnava Shakti.
As I know, Vishnu worship is dominated by Bhakti Marg; whereas Shiva worship is dominated by Tantrik Marg; as number of Tantrik texts came out of the conversation of Shiva and Parvati. Vishnu suits to the people of Sattvik temperament, and his devotees are mostly vegetarian, love cow and are kind by heart. Here is Vishnu Chalisa and Aarti to get his grace.
विष्णु चालीसा
|| दोहा ||
विष्णु सुनिए विनय सेवक की चितलाय, कीरत कुछ वर्णन करुँ दीजै ज्ञान बताय ||
|| चौपाई ||
१) नमो विष्णु भगवान् खरारी, कष्ट नशावन अखिल बिहारी ॥
२) प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी, त्रिभुवन फैल रही उजियारी ॥
३) सुन्दर रुप मनोहर सूरत, सरल स्वभाव मोहनी मूरत ॥
४) तन पर पीताम्बर अति सोहत, बैजन्ती माला मन मोहत ॥
५) शंख चक्र कर गादा बिराजे, देखत दैत्य असुर दल भाजे ॥
६) सत्य धर्म मद लोभ न गाजे, काम क्रोध मद लोभ न छाजे ॥
७) सन्तभक्त सज्जन मनंरजन, दनुज असुर दुष्टन दल गंजन ॥
८) सुख उपजाय कष्ट सब भंजन, दोष मिटाय करत जन सज्जन ॥
९) पाप काट भव सिन्धु उतारण, कष्ट नाशकर भक्त उबारण ॥
१०) करत अनेक रुप प्रभु धारण, केवल आप भक्ति के कारण ॥
११) धरणि धेनू बन तुमहिं पुकारा, तब तुम रुप राम का धारा ॥
१२) भार उतार असुर दल मारा, रावण आदिक को संहारा ॥
१३) आप वाराह रुप बनाया, हिरण्याक्ष को मार गिराया ॥
१४) धर मतस्य तन सिन्धु बनाया, चौदह रतनन को निकलाया ॥
१५) अमिलख असुरन द्वन्द मचाया, रुप मोहनी आप बहलाया ॥
१६) देवन को अमृत पान कराया, असुरन को छबि से बहलाया ॥
१७) कूर्म रुप धर सिंधु मझाया, मन्द्राचल गिरि तुरत उठाया ॥
१८) शंकर का तुम फन्द छुड़ाया, भस्मासुर को रुप दिखाया ॥
१९) वेदन को जब असुर डुबाया, कर प्रबन्ध उन्हें ढुँढवाया ॥
२०) मोहित बनकर खलहि नचाया, उसही कर से भस्म कराया ॥
२१) असुर जलंधर अति बलदाई, शंकर से उन कीन्ह लड़ाई ॥
२२) हार पार शिव सकल बनाई, कीन सती से छल खल जाई ॥
२३) सुमिरन कीन तुम्हें शिवरानी, बतलाई सब विपत कहानी ॥
२४) तब तुम बने मुनीश्वर ज्ञानी, वृन्दा की सब सुरति भुलानी ॥
२५) देखत तीन दनुज श्ौतानी, वृन्दा आय तुम्हें लपटानी ॥
२६) हो स्पर्श धर्म क्षति मानी, हना असुर उर शिव शैतानी ॥
२७) तुमने धुरु प्रहलाद उबारे, हिरणकुश आदिक खल मारे ॥
२८) गणिका और अजामिल तारे, बहुत भक्त भव सिन्धु उतारे ॥
२९) हरहु सकल संताप हमारे, कृपा करहु हरि सिरजन हारे ॥
३०) देखहु मैं नित दरश तुम्हारे, दीन बन्धु भक्तन हितकारे ॥
३१) चहत आपका सेवक दर्शन, करहु दया अपनी मधुसूदन ॥
३२) जांनू नहीं योग्य जप पूजन, होय यज्ञ स्तुति अनुमोदन ॥
३३) शीलदया सन्तोष सुलक्षण, विदित नहीं व्रतबोध विलक्षण ॥
३४) करहूँ आपका किस विधि पूजन, कुमति विलोक होत दुख भीषण ॥
३५) करहुँ प्रणाम कौन विधि सुमिरण, कौन भाँति मै करहुँ समर्पण ॥
३६) सुर मुनि करत सदा सिवकाई, हर्षित रहत परम गति पाई ॥
३७) दीन दुखिन पर सदा सहाई, निज जन जान लेव अपनाई ॥
३८) पाप दोष संताप नशाओ, भाव बन्धन से मुक्त कराओ ॥
३९) सुत सम्पति दे सुख उपजाओ, निज चरनन का दास बनाओ ॥
४०) निगम सदा ये विनय सुनावै, पढ़ै सुनै सो जन सुख पावै ॥
विष्णु आरती
१) ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे॥
२) भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥
३) जो ध्यावे फल पावे, दुःख बिनसे मन का॥
४) सुख सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥
५) मात पिता तुम मेरे, शरण गहूं मैं किसकी॥
६) तुम बिन और न दूजा, आस करूं मैं जिसकी॥
७) तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतरयामी॥
८) पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सब के स्वामी॥
९) तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता॥
१०) मैं सेवक तुम स्वामी, कृपा करो भर्ता॥
११) तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति॥
१२) किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति॥
१३) दीनबंधु दुखहर्ता, तुम रक्षक मेरे॥
१४) करुणा हाथ बढ़ाओ, द्वार पड़ा तेरे॥
१५) विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा॥
१६) श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥
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