When I was writing this draft, suddenly Google Docs stopped writing in Hindi, so I tried Google Input Tool in writing this. Sometimes I write drafts on Google Docs and sometimes in WordPress itself.
Now coming to this Chalisa, lord Shiva is said to be a kind hearted, that’s why he is also called “Bhola Bhandari” means he pleases very fast — and on the other hand, he gets angry very fast too.
In Hindu Spiritual Stories, when Devtas had some problem, most of time they ran to lord Shiva — and got the solution. In every Hindu temple, there is Shiva, check the temple you might have visited.
The most popular things about Shiva are — his accessories, snake and trident; mantras like “Om Namah Shivay”, Tryambakam mantra “Om Tryambaakam Yajamahe …” and mantra “Om Hrom Jum Sah.” And mostly importantly, he is a great ascetic and indulges in meditative state.
If you are a Shiva devotee, you would love this chalisa — it has two Dohas and 41 lines, good for chanting every day, on Mondays or at least on Shivraatris.
॥ दोहा ॥
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान ।
कहत अयोध्यादास तुम, देउ अभय वरदान ॥
॥ चोपाई ॥
१) जय गिरिजापति दीन दयाला, सदा करत संतन प्रतिपाला ॥
२) भाल चन्द्रमा सोहत नीके, कानन कुण्डल नागफनी के ॥
३) अंग गौर सिर गंग बहाये, मुण्डमाल तन क्षार लगाये ॥
४) वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे, छवि को देखि नाग मुनि मोहे ॥
५) मैना पातु कि हवै दुलारी, वाम अंग सोहत छवि न्यारी ॥
६) कर त्रिशूल सोहत छवि भारी, करत सदा शत्रुन क्षयकारी ॥
७) नन्दि गणेश सोहैं तहँ कैसे, सागर मध्य कमल हैं जैसे ॥
८) कार्तिक श्याम और गणराऊ, या छवि को कहि जात न काउ ॥
९) देवन जबहीं जाय पुकारा, तबहीं दुःख प्रभु आप निवारा ॥
१०) कियो उपद्रव तारक भारी, देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी ॥
११) तुरत षडानन आप पठायउ, लव निमेष महँ मारि गिरायउ ॥
१२) आप जलंधर असुर संहारा, सुयश तुम्हार विदित संसारा ॥
१३) त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई, तबहिं कृपा करि लीन बचाई ॥
१४) किया तपहिं भागीरथ भारी, पुरव प्रतिज्ञा तासु पुरारी ॥
१५) दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं, सेवक स्तुति करत सदाहीं ॥
१६) वेद माहि महिमा तुम गाई, अकथ अनादि भेद नहिं पाई ॥
१७) प्रगटि उदधि मंथन में ज्वाला, जरत सुरासुर भये विहाला ॥
१८) किन्हीं दया तहँ करी सहाई, नीलकण्ठ तब नाम कहाई ॥
१९) पूजन रामचंद्र जब कीन्हां, जीत के लंक विभीषण दीन्हां ॥
२०) सहस कमल में हो रहे धारी, कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी ॥
२१) एक कमल प्रभु राखेउ जोई, कमल नयन पूजन चहं सोई ॥
२२) कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर, भए प्रसन्न दिए इच्छित वर ॥
२३) जय जय जय अनन्त अविनाशी, करत कृपा सबके घटवासी ॥
२४) दुष्ट सकल नित मोहि सतावै, भ्रमत रहौं मोहे चैन न आवै ॥
२५) त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो, येही अवसर मोहि आन उबारो ॥
२६) लै त्रिशूल शत्रुन को मारो, संकट से मोहिं आप उबारो ॥
२७) मात पिता भ्राता सब कोई, संकट में पूछत नहिं कोई ॥
२८) स्वामी एक है आस तुम्हारी, आय हरहु मम संकट भारी ॥
२९) धन निर्धन को देत सदाहीं, जो कोई जाँचे सो फल पाहीं ॥
३०) अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी, क्षमहु नाथ अब चूक हमारी ॥
३१) शंकर हो संकट के नाशन, विघ्न विनाशन मंगल कारण ॥
३२) योगि यति मुनि ध्यान लगावैं, नारद शारद शीश नवावैं ॥
३३) नमो नमो जय नम: शिवाय, सुर ब्रह्मादिक पार न पाए ॥
३४) जो यह पाठ करे मन लाई, ता पर होत हैं शम्भु सहाई ॥
३५) ॠनियाँ जो कोई हो अधिकारी, पाठ करै सो पावन हारी ॥
३६) पुत्र होन की इच्छा जोई, निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई ॥
३७) पंडित त्रयोदशी को लावे, ध्यान पूर्वक होम करावे ॥
३८) त्रयोदशी व्रत करै हमेशा, तन नहिं ताके रहै कलेशा ॥
३९) धूप दीप नैवेध्य चढ़ावै, शंकर सम्मुख पाठ सुनावै ॥
४०) जन्म जन्म के पाप नसावै, अन्त धाम शिवपुर में पावै ॥
४१) कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी, जानि सकल दुःख हरहु हमारि ॥
॥ दोहा ॥
नित नेम उठि प्रातः ही, पाठ करो चालीस, तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश ॥
मंगसिर छठी हेमंत ऋतु, संवत चौसठ जान, स्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण ॥
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