Parvati, wife of lord Shiva, is the shakti behind all the goddesses, yes behind all the ten Mahavidyas, she alone is. Her conversations with lord Shiva are always very meaningful and practical — whenever she talked to lord Shiva, it turned out to be a Granth. To which everyone (who believe in them) follows and takes to the heart. Following is her Chalisa and Aarti to please her, even you worship any of Mahavidyas, it just reaches to her.
Shri Parvati Chalisa
॥ दोहा ॥
जय गिरी तनये दक्षजे शंभु प्रिये गुणखानि, गणपति जननी पार्वती अम्बे शक्ति भवानि ॥
॥ चौपाई ॥
१) ब्रह्मा भेद न तुम्हरो पावे, पंच बदन नित तुमको ध्यावे ॥
२) षड्मुख कहि न सकत यश तेरो, सहसबदन श्रम करत घनेरे ॥
३) तेऊ पार न पावत माता, स्थित रक्षा लय हित सजाता ॥
४) अधर प्रवाल सदृश अरुणारे, अति कमनीय नयन कजरारे ॥
५) ललित ललाट विलेपित केशर, कुंकुंम अक्षत शोभा मनहर ॥
६) कनक बसन कंचुकी सजाए, कटि मेखला दिव्य लहराए ॥
७) कंठ मदार हार की शोभा, जाहि देखि सहजहि मन लोभा ॥
८) बालारुण अनन्त छबि धारी, आभूषण की शोभा प्यारी ॥
९) नाना रत्न जटित सिंहासन, तापर राजति हरि चतुरानन ॥
१०) इन्द्रादिक परिवार पूजित, जग मृग गान यक्ष रव कूजित ॥
११) गिर कैलास निवासिनी जय जय, कोटिक प्रभा विकासिन जय जय ॥
१२) त्रिभुवन सकल कुटुम्ब तिहारी, अणु अणु महं तुम्हारी उजियारी ॥
१३) हैं महेश प्राणेश तुम्हारे, त्रिभुवान के जो नित रखवारे ॥
१४) उनसो पति तुम प्राप्त कीन्ह जब, सुकृत पुरातन उदित भए तब ॥
१५) बूढ़ा बैल सवारी जिनकी, महिमा का गावे कोउ तिनकी ॥
१६) सदा श्मशान बिहारी शंकर, आभूषण है भुजंग भयंकर ॥
१७) कण्ठ हलाहल को छबि छाती, नीलकण्ठ की पदवी पायी ॥
१८) देव मगन के हित अस कीन्हों, विष लै आपु तिनहि अमि दिन्हों ॥
१९) ताकी तुम पत्नी छवि धारिणि, दूरित विदारिणि मंगल कारिणि ॥
२०) देखि परम सौन्दर्य तिहारो, त्रिभुवन चकित बनावन हारो ॥
२१) भय भीता सो माता गंगा, लज्जा मय है सलिल तरंगा ॥
२२) सौत समान शम्भु पहआयी, विष्णु पदाब्ज छोड़ि सो धायी ॥
२३) तेहिकों कमल बदन मुरझायो, लखि सत्वर शिव शीश चढ़ायो ॥
२४) नित्यानन्द करी बरदायिनी, अभय भक्त कर नित अनपायिनि ॥
२५) अखिल पाप त्रयताप निकन्दिनि, माहेश्वरी हिमालय नन्दिनि ॥
२६) काशी पुरी सदा मन भायी, सिद्ध पीठ तेहि आपु बनायी ॥
२७) भगवती प्रतिदिन भिक्षा दात्री, कृपा प्रमोद सनेह विधात्री ॥
२८) रिपुक्षय कारिणि जय जय अम्बे, वाचा सिद्ध करि अवलम्बे ॥
२९) गौरी उमा शंकरी काली, अन्नपूर्णा जग प्रतिपाली ॥
३०) सब जन की ईश्वरी भगवती, पतिप्राणा परमेश्वरी सती ॥
३१) तुमने कठिन तपस्या कीनी, नारद सों जब शिक्षा लीनी ॥
३२) अन्न न नीर न वायु अहारा, अस्थि मात्रतन भयउ तुम्हारा ॥
३३) पत्र घास को खाद्य न भायउ, उमा नाम तब तुमने पायउ ॥
३४) तप बिलोकि रिषि सात पधारे, लगे डिगावन डिगी न हारे ॥
३५) तब तव जय जय जय उच्चारेउ, सप्तरिषी निज गेह सिधारेउ ॥
३६) सुर विधि विष्णु पास तब आए, वर देने के वचन सुनाए ॥
३७) मांगे उमा वर पति तुम तिनसों, चाहत जग त्रिभुवन निधि जिनसों ॥
३८) एवमस्तु कहि ते दोऊ गए, सुफल मनोरथ तुमने लए ॥
३९) करि विवाह शिव सों हे भामा, पुनः कहाई हर की बामा ॥
४०) जो पढ़िहै जन यह चालीसा, धन हम सुख देइहै तेहि ईसा ॥
॥ दोहा ॥
कूट चंद्रिका सुभग शिर जयति जयति सुख खानि, पार्वती निज भक्त हित रहहु सदा वरदानि ॥
Shri Parvati Aarti
१) जय पार्वती माता जय पार्वती माता ब्रह्म सनातन देवी शुभ फल की दाता॥
२) अरिकुलपदम् विनाशिनि जय सेवक त्राता, जग जीवन जगदम्बा, हरिहर गुण गाता॥
३) सिंह को वाहन साजे, कुण्डल हैं साथा, देवबंधू जस गावत, नृत्य करत ताथा॥
४) सतयुग रूपशील अतिसुन्दर, नाम सती कहलाता, हेमांचल घर जन्मी, सखियन संग राता॥
५) शुम्भ निशुम्भ विदारे, हेमांचल स्थाता, सहस्त्र भुजा तनु धरि के, चक्र लियो हाथा॥
६) सृष्टि रूप तुही है जननी शिवसंग रंगराता, नन्दी भृंगी बीन लही सारा जग मदमाता॥
७) देवन आरज करत हम चित को लाता, गावत दे दे ताली, मन में रंगराता॥
८) “श्री प्रताप” आरती मैया की, जो कोई गाता, सदासुखी नित रहता सुख सम्पत्ति पाता॥
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