This Punsavan Vrat starts from Margashirsha Pratipada and ends at Margashirsha Amavasya — thus it goes for a year. This Vrat is mostly observed by women, but at the time of health problem or at the cycle of menstruation, woman’s husband should observe this Vrat — ‘coz benefit of this Vrat goes both to husband and wife.
The rule is, you can’t stop this Vrat in between (you complete a year commitment), either you do it or your partner will do it. यह व्रत स्त्रियों को सौभाग्य, धन, सम्पत्ति तथा सुयश देता है। कन्याओ को सुन्दर पति देता है। विधवा को म्रत्युउपरांत विष्णु लोक देता है। तथा श्रीहीन को सौंदर्य तथा श्री की प्राप्ति होती है।
Punsavan Vrat Katha
I find this katha, little strange. It goes like that — एक बार एक स्त्री ने इन्द्र को मारने के लिए भगवान से वरदान माँगा। भगवान् ने उस स्त्री को पुंसवन व्रत करने को कहा जिससे की उसके ऐसा पुत्र पैदा हो सके जो इंद्रा को मार सके। साथ ही साथ उस स्त्री को व्रत के नियम भी बता दिये, वो ये थे की ०) एक वर्ष तक होना चाहिये, ०) अशुद्धता नहीं होनी चाहिये, ०) झूठ नहीं बोलना चाहिये, ०) जीव हिंसा नहीं होनी चाहिये, ०) रजस्वला स्त्री का स्पर्श नहीं होना चाहिये, तथा ०) भिक्षुक निराश नहीं लौटना चाहिये। वो स्त्री नियम के प्रति सहमत हो गयी तथा व्रत करने लगी।
जब व्रत पूरा होने को आया तभी के दिनों में इंद्र देवता ने एक दिन उसके गर्भ में प्रवेश करके गर्भ के टुकड़े टुकड़े कर दिये। इंद्र ऐसा इसलिए कर पाया क्योकि एक दिन पहली बार उस स्त्री से अशुद्धता हो गयी और नियम टूट गया, बाद में इंद्र गर्भ की आत्मा को अपने छोटे भाई के रूप में इंद्रलोक ले गया।
ये पुंसवन व्रत का ही परिणाम था जिससे की इंद्र भी भयभीत हो गया। इस व्रत को अच्छे कार्य के लिए करना चाहिए क्योकि बुरी चाह का परिणाम बुरा ही आता है।
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