महालक्ष्मी का व्रत राधा अष्टमी से आरम्भ होकर कुवार महीने की वदी अष्टमी को समाप्त होता है। This day, goddess Lakshmi is worshiped. पूजा करने के लिए सबसे पहले देवी को स्नान कराकर शुद्ध वस्त्र पहनाने चाहियें। फिर उनके लिए सुगन्धित धूप तथा शुद्ध देसी घी का दीपक जलाकर, तथा कुछ फूल चढ़ाकर भोग लगाया जाये, तथा बाद में भोग को प्रसाद के रूप में लोगो में वितरण किया जाए।
रात्रि में चन्द्रमा को अर्घ्य देकर तथा चन्द्रमा की आरती उतारकर ही व्रत समाप्त करना चाहिए। व्रत समाप्त होने पर ही भोजन करें। तथा रात्रि में देवी के गुणगान तथा कथा सुनते सुनाते हुए ही शयन करें।
Maha-Lakshmi Vrat Katha
प्राचीन समय में एक निर्धन आदमी रहता था, अत्यंत ही गरीब, भगवान् विष्णु को उस पर दया आ गयी। उन्होंने उस निर्धन आदमी को बताया की जिस दिन लक्ष्मी जी दिखें उस दिन उनका पल्ला पकड़ लेना और अपने घर चलने को कहना। एक दिन निर्धन आदमी घर के बाहर घूम रहा था तभी भगवान् विष्णु ने इशारा किया की यही स्त्री लक्ष्मी है।
उस आदमी ने उनका पल्ला पकड़ लिया और छोड़ा नहीं, अंत में लक्ष्मी जी को उसके घर चलने का वचन देना पड़ा। तथा उससे कहा की “तुम अपने स्त्री सहित सोलह (१६) दिन तक मेरी व्रत पूजा करो, १६वें दिन चंद्रमा को अर्घ्य देखर उत्तर की और मुह करके मुझे स्मरण करना, मैं तुम्हारे घर स्थापित हो जाउंगी”.
इस प्रकार उस आदमी की दरिद्र दूर हो गई तथा वो ख़ुशी पूर्वक लक्ष्मी जी की पूजा करते हुए जीवन यापन करने लगा। Since that time, this festival is celebrated every year.
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